छत्रपति संभाजी महाराज: वीरता, बलिदान और परिवार
छत्रपति संभाजी महाराज, जिन्हें “धर्मवीर संभाजी महाराज” के नाम से भी जाना जाता है, मराठा साम्राज्य के द्वितीय छत्रपति थे। वे छत्रपति शिवाजी महाराज के ज्येष्ठ पुत्र और उत्तराधिकारी थे। उन्होंने न केवल अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाया, बल्कि मुगल आक्रमणों का वीरता से सामना किया और अपने बलिदान से इतिहास में अमर हो गए। उनकी वीरता, साहस और हिंदू धर्म की रक्षा के लिए किए गए बलिदान को भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है।

छत्रपति संभाजी महाराज का प्रारंभिक जीवन
छत्रपति संभाजी महाराज का जन्म 14 मई 1657 को पुरंदर किले में हुआ था। उनकी माता सईबाई थीं, जो छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रमुख पत्नी थीं। बचपन से ही वे तीव्र बुद्धि और असाधारण वीरता के धनी थे। उनकी शिक्षा की शुरुआत दादोजी कोंडदेव और गुरु बालाजी आवजी के मार्गदर्शन में हुई। वे संस्कृत, मराठी और फारसी भाषाओं में निपुण थे। छत्रपति शिवाजी महाराज ने उन्हें प्रशासनिक और युद्धनीति की शिक्षा दी, जिससे वे एक कुशल योद्धा और सक्षम प्रशासक बने।
छत्रपति संभाजी महाराज का परिवार
छत्रपति संभाजी महाराज का विवाह येसूबाई से हुआ था। उनके पुत्र शाहू महाराज थे, जिन्होंने बाद में मराठा साम्राज्य को आगे बढ़ाया। उनकी मार्गदर्शिका माता सोयराबाई थीं, जो छत्रपति शिवाजी महाराज की दूसरी पत्नी थीं। छत्रपति शिवाजी महाराज के निधन के बाद, सत्ता संघर्ष के कारण सोयराबाई ने अपने पुत्र राजाराम महाराज को राजा बनाने का प्रयास किया, लेकिन छत्रपति संभाजी महाराज ने अपनी वीरता और रणनीति से सत्ता संभाली।
छत्रपति संभाजी महाराज के परिवार के प्रमुख सदस्य:
- पिता: छत्रपति शिवाजी महाराज
- माता: सईबाई
- पत्नी: येसूबाई
- पुत्र: शाहू महाराज
- मार्गदर्शिका माता: सोयराबाई
- छत्रपति शिवाजी महाराज के अन्य पुत्र: राजाराम महाराज
छत्रपति संभाजी महाराज की वीरता और युद्ध कौशल
छत्रपति संभाजी महाराज ने अपने जीवनकाल में कई युद्ध लड़े और अपनी वीरता से मराठा साम्राज्य को सुदृढ़ किया। उन्होंने मुगलों, पुर्तगालियों और अंग्रेजों के विरुद्ध लगातार संघर्ष किया।
1. मुगलों के खिलाफ युद्ध
छत्रपति संभाजी महाराज के शासनकाल में औरंगज़ेब ने मराठा साम्राज्य को समाप्त करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। लेकिन छत्रपति संभाजी महाराज ने अपने सीमित संसाधनों के बावजूद मुगलों के खिलाफ प्रभावी रणनीति अपनाई और उन्हें कई बार पराजित किया।
- 1681 में औरंगज़ेब के दक्षिण भारत आक्रमण का सामना:
औरंगज़ेब ने दक्षिण भारत में अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए एक विशाल सेना भेजी, लेकिन छत्रपति संभाजी महाराज ने अपनी गुरिल्ला युद्ध नीति से मुगलों को भारी क्षति पहुँचाई। - बुर्ली घाट की लड़ाई:
इस युद्ध में छत्रपति संभाजी महाराज ने मुगल सेना को करारी शिकस्त दी और मुगल सेनापति को बंदी बना लिया।
2. पुर्तगालियों और अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष
छत्रपति संभाजी महाराज ने विदेशी शक्तियों के विरुद्ध भी मोर्चा संभाला। उन्होंने गोवा के पुर्तगालियों और कोंकण के अंग्रेजों के खिलाफ निर्णायक युद्ध लड़े और उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।
छत्रपति संभाजी महाराज का बलिदान
छत्रपति संभाजी महाराज का बलिदान भारतीय इतिहास की सबसे दर्दनाक और वीर गाथाओं में से एक है।
कैसे पकड़े गए छत्रपति संभाजी महाराज?
5 फरवरी 1689 को छत्रपति संभाजी महाराज और उनके साथी कवि कलश को गुप्तचर मिर्जा राजा जयसिंह के विश्वासघात के कारण संगमेश्वर (वर्तमान महाराष्ट्र) में मुगलों ने पकड़ लिया। उन्हें औरंगज़ेब के समक्ष पेश किया गया।
धर्म परिवर्तन का दबाव
औरंगज़ेब ने छत्रपति संभाजी महाराज के सामने इस्लाम स्वीकार करने की शर्त रखी। यदि वे इस्लाम स्वीकार कर लेते, तो उन्हें सम्मानजनक जीवन दिया जाता। लेकिन छत्रपति संभाजी महाराज ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया और कहा:
“मैं मरते दम तक हिंदू ही रहूँगा, चाहे कितने भी कष्ट सहने पड़ें।”
निर्दयता से हत्या
औरंगज़ेब ने इस अस्वीकार को अपना अपमान समझा और उन्हें कठोर यातनाएँ देने का आदेश दिया।
- उनकी आँखें फोड़ने की कोशिश की गई।
- उनकी जीभ काट दी गई, ताकि वे अपने धर्म का प्रचार न कर सकें।
- उनके हाथ-पैर काट दिए गए।
- उनकी खाल जिंदा उतारी गई।
- 21 दिनों तक लगातार उन्हें यातनाएँ दी गईं।
अंततः, 11 मार्च 1689 को, छत्रपति संभाजी महाराज को बेरहमी से मार दिया गया। उनकी मृत्यु के बाद, उनकी कटे हुए शरीर के टुकड़े नदी में फेंक दिए गए। लेकिन मराठा सैनिकों ने उनके शरीर के टुकड़ों को एकत्र कर उनका सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार किया।
छत्रपति संभाजी महाराज का प्रभाव और विरासत
छत्रपति संभाजी महाराज का बलिदान व्यर्थ नहीं गया। उनकी शहादत ने मराठाओं के मन में और अधिक जोश भर दिया। उनके पुत्र शाहू महाराज और उनके अनुयायियों ने मराठा साम्राज्य को पुनः सशक्त किया और मुगलों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।
छत्रपति संभाजी महाराज का योगदान:
- हिंदू धर्म की रक्षा: उन्होंने जबरन धर्म परिवर्तन का विरोध किया और हिंदू संस्कृति को बचाए रखा।
- मराठा साम्राज्य का विस्तार: उनके शासनकाल में मराठा साम्राज्य ने कई क्षेत्रों में विजय प्राप्त की।
- अमर बलिदान: उनका बलिदान आज भी लोगों को प्रेरणा देता है।
निष्कर्ष
छत्रपति संभाजी महाराज न केवल एक योद्धा थे, बल्कि वे धर्म और संस्कृति के रक्षक भी थे। उन्होंने अपने साहस और बलिदान से यह साबित कर दिया कि धर्म और स्वाभिमान के लिए जीवन न्योछावर करना सच्चे वीर की पहचान होती है। उनका जीवन और बलिदान आज भी भारतीय युवाओं को प्रेरित करता है।
“जय भवानी! जय छत्रपति शिवाजी महाराज! जय छत्रपति संभाजी महाराज!”