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प्राकृतिक खेती क्या है? What is natural Farming.

              प्राकृतिक खेती क्या है?
प्राकृतिक खेती अर्थात जीवाणुओं की खेती. खेती की इस पद्धति का मुख्य आधार सूक्ष्म जीवाणु हैं. सूक्ष्म जीवाणु और केंचुए एक दूसरे के सहयोगी हैं. जब सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि होती है तो केंचुओं की संख्या भी बढ़ती है तथा जब केंचुओं की संख्या बढ़ती है तो सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या में भी वृद्धि होती  है. दोनों ही परस्पर एक दूसरे का सहयोग करते हैं.
     प्राकृतिक खेती में प्राकृतिक संसाधनों का कम से कम प्रयोग किया जाता है और खाली होते हुए प्राकृतिक संसाधनों की भर्ती करते हुए प्रकृति को रोल मॉडल मानकर और भूमि को जीवित अस्तित्व समझकर जो खेती की जाती है वह प्राकृतिक खेती है. दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि संरक्षण खेती अर्थात कंजर्वेशन एग्रीकल्चर से यदि रासायनिक इनपुट्स को हटा दिया जाए और प्राकृतिक इनपुट्स को शामिल कर दिया जाए तो वह प्राकृतिक खेती बन जाती है.
प्राकृतिक खेती और जैविक खेती में क्या अंतर है? प्राकृतिक और जैविक खेती पूर्णतः अलग-अलग सिद्धांतों पर काम करते हैं.
i. जैविक खेती में रासायनिक खेती की तरह जब किसी फसल की बिजाई की जाती है तो उस फसल के लिए जरूरी पोषक तत्वों की सिफारिश की गई मात्रा के आधार पर जैविक खाद का प्रयोग किया जाता है अर्थात फसल की जरूरत के अनुसार गोबर की खाद, केंचुए की खाद या किसी दूसरे जैविक स्रोत के आधार पर मात्रा निर्धारित की जाती है. जिसे फसल की बिजाई से पहले और फसल की बिजाई के बाद खेत में डाला जाता है. प्राकृतिक खेती में किसी भी खाद का प्रयोग नहीं किया जाता है और ना ही इसे निर्धारित किया जा सकता है. प्राकृतिक खेती में खेत में जीवाणुओं का कल्चर अर्थात जामन डाला जाता है. इसके बाद जीवाणुओं का काम होता है कि वह फसल की हर प्रकार की जरूरत को पूरी करें.
ii. प्राकृतिक खेती में एक देसी गाय के अतिरिक्त फसल की जरूरत पूरी करने के लिए किसी भी इनपुट को खरीदने के लिए बाजार में जाने की जरूरत नहीं होती है जबकि जैविक खेती एक महंगी तकनीक है जिसमें फसल की जरूरतों को पूरा करने के लिए भिन्न भिन्न प्रकार के जैविक खाद और जैविक दवाओं की जरूरत को पूरा करने के लिए बाजार में जाना पड़ता है और यह जैविक इनपुटस रसायनिक इनपुटस से भी महंगे होते हैं. इसके अतिरिक्त बाजार में जैविक इनपुट्स की भरमार हो गई है. किसान के लिए यह फैसला करना कठिन हो जाता है कि वह किस-किस जैविक इनपुट्स का प्रयोग करें जबकि प्राकृतिक खेती में प्रयोग होने वाले सभी इनपुट्स घर पर ही आसानी से तैयार हो जाते हैं.
iii. जैविक खेती में आरंभ के तीन-चार वर्षों तक पैदावार में गिरावट आती है जबकि प्राकृतिक खेती में पहले वर्ष से ही यदि सही तरीके से खेती की जाए तो फसल की पूरी पैदावार ली जा सकती है.
iv. प्राकृतिक खेती में एक गाय से 30 एकड़ तक की खेती संभव है जबकि जैविक खेती में  एक एकड़ के लिए खाद की जरूरत पूरी करने के लिए 25 से 30 पशुओं की जरूरत होती है जो किसी भी किसान के लिए संभव नहीं है.

हरित क्रांति से पहले किसी भी रासायनिक इनपुट का प्रयोग नहीं किया जाता था उस समय की प्राकृतिक खेती और आज की प्राकृतिक खेती में क्या अंतर है?
हरित क्रांति से पहले जो खेती की जाती थी वह जैविक खेती थी उस खेती में प्राकृतिक खेती से संबंधित कोई भी कृषि क्रियाएं शामिल नहीं थी. उस समय की खेती में दो प्रमुख अंग थे. एक खेत में उपलब्धि के अनुसार गोबर की खाद का प्रयोग और दूसरा गर्मी के महीनों में खेत की अधिक से अधिक जुताई. यह दोनों ही कृषि क्रियाएं प्राकृतिक खेती का अंग नहीं हैं. गोबर या केंचुए की खाद का अधिक प्रयोग फसल में खरपतवार, कीट व बीमारियों को आमंत्रित करता है जबकि गर्मी के मौसम में खेत की अधिक जुताई खेत के जैविक कार्बन और उर्वरा शक्ति को कम करती है. बीमारी पैदा करने वाले जीवाणुओं की भोजन की आवश्यकता लाभदायक जीवाणुओं की तुलना में अधिक होती है और गोबर या केंचुए की खाद हानिकारक जीवाणुओं के भोजन की जरूरत आसानी से पूरी कर देते हैं जबकि प्राकृतिक खेती में कोई भी ऐसा सबस्ट्रेट नहीं दिया जाता है जो हानिकारक जीवाणुओं की वृद्धि में सहायक हो बल्कि जीवामृत और घन जीवामृत के माध्यम से सीमित मात्रा में गोबर और गोमूत्र का प्रयोग किया जाता है जो केवल लाभदायक जीवाणुओं को बढ़ाने में सहायता करता है सीमित मात्रा में देसी गाय के गोबर और गोमूत्र के प्रयोग से हानिकारक जीवाणुओं की वृद्धि नहीं हो पाती है क्योंकि गाय के गोबर में ऐसे गुण मौजूद होते हैं जो कीट व बीमारी के जीवाणुओं को फसल से दूर रखते हैं और लाभदायक जीवाणु और केंचुओं को आकर्षित करते हैं. संभवत यह भी एक कारण था कि अधिक मात्रा में गोबर की खाद प्रयोग करने के कारण हानिकारक जीवाणुओं की संख्या मिट्टी में अधिक मात्रा में मौजूद रहती थी और इन हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करने के लिए गर्मी के मौसम में अधिक बार खेत की जुताई करनी पड़ती थी जो प्राकृतिक खेती के सिद्धांतों के एकदम विपरीत है. आधुनिक प्राकृतिक खेती में जिन सिद्धांतों और व्यावहारिक अवधारणाओं को शामिल किया गया है वह प्राचीन प्राकृतिक/जैविक खेती की अवधारणाओं से एकदम भिन्न हैं.

प्राकृतिक खेती के जनक कौन हैं?
विश्व स्तर पर प्राकृतिक खेती की पद्धति की खोज करने वाले सबसे पहले व्यक्ति जापान के माशानोबू फुकुओका थे जो एक वैज्ञानिक, फिलॉस्फर और किसान भी थे. उन्होंने सबसे पहले प्राकृतिक खेती का सिद्धांत प्रतिपादित किया जिसे उन्होंने नो-टिल फार्मिंग या डू-नथिंग फार्मिंग कहकर पुकारा अर्थात प्राकृतिक खेती ऐसी पद्धति है जिसमें खेत की जुताई बिल्कुल नहीं करनी चाहिए. इसके अतिरिक्त उनके द्वारा बताई गई प्राकृतिक खेती के तीन सिद्धांत और थे, जिसके अंतर्गत खेत में घास का नियंत्रण नहीं करना होता है, किसी भी रासायनिक खाद और रासायनिक दवा का प्रयोग नहीं करना होता है. यह सभी कार्य विभिन्न कृषि क्रियाओं के अपनाने से स्वयं ही संभव हो जाते हैं.

भारत में प्राकृतिक कृषि के जनक कौन हैं?
भारत में प्राकृतिक कृषि के जनक पदम श्री अवार्डी श्री सुभाष पालेकर हैं जिन्होंने प्राकृतिक खेती को एक विशेष पैकेज देकर नया रूप प्रदान किया है जिसमें खेत में जीवाणुओं की संख्या को बढ़ाने पर विशेष बल दिया जाता है. गुजरात प्रांत  के राज्यपाल महामहिम आचार्य देवव्रत इस पद्धति को देश में एक अभियान के रूप में आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं. देश के आदरणीय प्रधानमंत्री ने भी इस पद्धति को विश्व स्तर पर फैलाने के लिए और आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए देश के किसानों का आह्वान किया है.

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