Vegetable farming

बेलवाली सब्जियों में आनेवाले फफूंदजनित रोगों का प्रबंधन कैसे करें?

पुरे देश के अलग अलग विभागों में बेलवाली सब्जियों की खेती हर समय चलती ही रहती है| बेलवाली सब्जियों में अलग अलग रोग के कारन फसल का बहोत ज्यादा नुकसान हो जाता है| अगर शुरुवाती समय में लक्षण दिखने पर प्रबंधन के तरीके इस्तेमाल नहीं होते है तो कुछ ही दिनों में पूरी फसल ख़तम हो जाती है| इसलिए इन फसलों में आनेवाले रोगों का प्रबंधन करना जरुरी होता है|
तो आज हम बेलवाली फसल में आनेवाले फफूंदजनित रोग कौनसे है और उनका प्रबंधन कैसे करना है इसके बारे में पूरी जानकारी लेते है|

*बेलवाली फसल में आनेवाले फफूंदजनित रोग*
*डाउनी मिल्ड्यू रोग:-*
यह डाउनी मिल्ड्यू बेलवाली सब्जियों के पौधों को बहुत अधिक प्रभावित करने वाला फफूंदजनित रोग है, जो स्यूडो पेरोनोस्पोरा क्यूबेंसिस (Pseudoperonospora cubensis) फंगस के कारण होता है। यह रोग पौधे को सभी अवस्था में प्रभावित कर सकता है। इस रोग के कारण पौधे की पत्तियों पर धब्बे दिखाई देने लगते हैं और वे पीली होकर गिर जाती हैं। डाउनी मिल्ड्यू से प्रभावित पौधे ठीक तरह से वृद्धि नहीं कर पाते और उन सब्जियों के पौधों में अच्छे फल नहीं लग पाते हैं।

*नियंत्रण के उपाय:-*
* बुवाई के समय दो पौधों के बिच दुरी रखे जिससे उनके आसपास हवा का प्रवाह बना रहे।
* पौधों को सुबह के समय पानी दें, जिससे पानी देने के दौरान उस पौधे को सूखने का पर्याप्त समय मिल सके।
* पौधे की पत्तियों पर जैविक कवकनाशी या नीम तेल का छिड़काव करें|
* शुरूआती लक्षण दिखाई देने पर, संक्रमित हिस्से को पौधों से काट कर अलग कर दें।
* मैन्कोज़ेब, ज़िनेब और ट्राइकोप-50 जैसे कुछ सुरक्षात्मक कवकनाशी का छिड़काव
(ट्राइबेसिक कॉपर सल्फेट) @ 0.2-0.3% 5-7 दिनों के अंतराल से करें।

*पाउडरी मिल्ड्यू रोग:-*
इसे फफूंदी भी कहा जाता है, यह बेलवाली सब्जियों से सम्बंधित एक फफूंदजनित रोग है, जो पौधे की नई ग्रोथ को प्रभावित करती है। इस रोग के प्रभाव से पौधों की पत्तियां भूरे या सफ़ेद रंग की होकर सूख जाती हैं, जिससे कि पौधा समय से पहले नष्ट हो जाता है। पाउडरी मिल्ड्यू रोग के संक्रमण के कारण फल पूर्णतः विकसित नहीं होते और अनियमित आकार के हो जाते हैं।

*नियंत्रण के उपाय:-*
* इस रोग से बचने के लिए, पौधे की प्रतिरोधी किस्म के बीजों को लगाएं।
* दो पौधों के बीच सही अंतराल रखे ताकि हवा का प्रवाह फसल में रहे|
* इस रोग के शुरूआती लक्षण दिखाई देने पर, पौधों के संक्रमित हिस्से को काट कर अलग कर दें।
* रोग के शुरुवाती लक्षण दिखने पर पौधे पर जैविक फंगीसाइड का स्प्रे करें।
* बायोकंट्रोल एजेंट के रूप में वर्टिसिलियम लेकानी का इस्तेमाल कर सकते है|
* सल्फेक्स (0.2%), कैलिक्सिन (0.1%), कैराथेन जैसे किसी एक कवकनाशी के एक से तीन स्प्रे (0.05-0.2%), बाविस्टिन (0.1%) 10-12 दिनों के अंतराल पर आवश्यक हैं।

*सरकोस्पोरा लीफ स्पॉट रोग:-*
सरकोस्पोरा लीफ स्पॉट बेलवाली सब्जियों का एक प्रमुख रोग है, जो सरकोस्पोरा सिट्रुलिना (Cercospora citrullina fungus) फफूंद के कारण होता है। इस रोग की शुरुआत में पौधे की पत्तियों पर हरे और बैंगनी रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, धीरे-धीरे यह धब्बे बड़े आकार के हो जाते हैं और पत्तियां पीली होकर सूख जाती हैं। यह रोग कभी-कभी पौधे के फलों को भी प्रभावित करता है।

*नियंत्रण के उपाय:-*
* पौधों में नमी को कम करने के लिए, शाम के समय पानी देने से बचें।
* पौधों के आसपास वायु का प्रवाह बनाएं रखने के लिए दो पौधों के बिच दुरी रखे।
* संक्रमित पौधों पर जैविक फंगीसाइड, जैसे- नीम के तेल का छिड़काव करें।
* रासायनिक प्रबंधन में chlorothalonil या mancozeb 2gm/ltr के लेकर छिड़काव कर सकते है|

*फुसैरियम विल्ट रोग:-*
फुसैरियम विल्ट रोग बेलवाली सब्जियों को प्रभावित करती है। यह एक फफूंदजनित रोग है, जो फुसैरियम ऑक्सीस्पोरम (Fusarium oxysporum) फंगस के द्वारा फैलाई जाती है। इस रोग का प्रभाव पहले पौधे की पुरानी पत्तियों पर दिखाई देता है और जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, नई पत्तियां भी प्रभावित होने लगती हैं। इस रोग के संक्रमण के कारण पत्तियां मुरझाकर झड़ने लगती हैं, जिससे पौधे पूरी तरह विकसित नहीं हो पाते और अंततः मर भी सकते हैं।

*नियंत्रण के उपाय:-*
* पौधे लगाते समय फुसैरियम विल्ट रोग की प्रतिरोधी किस्म को चुनें।
* इस रोग से संक्रमित हिस्से को काट कर नष्ट कर दें।
* नाइट्रोजन की अधिक मात्रा, इस रोग के प्रति संवेदनशील होती है, इसलिए नाइट्रोजन युक्त उर्वरक की जगह जैविक खाद का उपयोग करें।
* पहले से फुसैरियम विल्ट रोग से संक्रमित मिट्टी में कुकुरबिट या बेलवाली सब्जियों को लगाने से बचें।
* यदि इस रोग से आपका पौधा बहुत अधिक प्रभावित हो गया है, तो उस पौधे को काट कर नष्ट कर दें और फिर से पौधा लगाने से पहले मिट्टी को स्टरलाइज करें।
* केमिकल में Prothioconazole इस्तेमाल कर सकते है|

ये फफूंदजनित रोग है जो बेलवाली फसल को नुकसान करते है| इनका प्रबंधन शुरुवाती दिनों से करना जरुरी होता है|
सदर्भ-इंटरनेट

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *